पुराण के बारे में
1. महापुराण के बारे में परिचय क्या है ?
महापुराण जैन धर्म से संबंधित दो भिन्न प्रकार के काव्य ग्रंथों का नाम हैं, जिनमें से एक की रचना संस्कृत में हुई हैं |
तथा दूसरे की अपभ्रंश में। संस्कृत में रचित 'महापुराण' के पूर्वार्ध (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं |
तथा उत्तरार्ध (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य गुणभद्र। अपभ्रंश में रचित बृहत् ग्रंथ 'महापुराण' के रचयिता महाकवि पुष्पदन्त हैं।
इस महाग्रंथ की पुष्पिका में स्वीकृत मुख्य नाम त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रह हैं तथा अपर नाम 'महापुराण' हैं।
इसके आदि भाग (आदिपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन तथा उत्तर भाग (उत्तरपुराण) के रचयिता आचार्य जिनसेन के शिष्य आचार्य गुणभद्र हैं।
♥ महापुराण लेख के मुख्य बिंदुओ...
1. महापुराण के बारे में परिचय क्या है ?
2. आदिपुराण के बारे में परिचय क्या है ?
3. उत्तरपुराण के बारे में परिचय क्या है ?
4. महापुराण की अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ क्या है ?
2. आदिपुराण के बारे में परिचय क्या है ?
जिनसेन स्वामी ने सभी ६३ शलाका पुरुषों का चरित्र लिखने की इच्छा से महापुराण का प्रारंभ किया था,
परंतु बीच में ही शरीरान्त हो जाने से उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी और महापुराण अधूरा रह गया |
जिसे उनकी मृत्यु के उपरांत उनके शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया। महापुराण के दो भाग हैं,
एक आदिपुराण और दूसरा उत्तरपुराण। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ या ऋषभदेव का चरित्र हैं |
और उत्तर पुराण में शेष २३ तीर्थंकरों तथा अन्य शलाका पुरुषों का। आदिपुराण में बारह हजार श्लोक तथा ४७ पर्व या अध्याय हैं।
इनमें से ४२ पर्व पूरे तथा ४३वें पर्व के ३ श्लोक आचार्य जिनसेन के और शेष चार पर्वों के १६२० श्लोक उनके शिष्य आचार्य गुणभद्र द्वारा रचित हैं।
इस तरह आदिपुराण के १०,३८० श्लोकों के रचयिता आचार्य जिनसेन हैं।
आदिपुराण जैनागम के प्रथमानुयोग ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ माना गया हैं।
विविध विषयों का अपने ढंग से विवेचन करने के अतिरिक्त आचार्य जिनसेन ने अपने से पूर्ववर्ती सिद्धसेन, समंतभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र, प्रभाचंद्र, शिवकोटि आदि सोलह विद्वानों का भी उल्लेख किया हैं।
इसके अतिरिक्त देशविभाग में सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, कुरु, काशी आदि प्रदेशों का भी विवरण आया हैं।
3. उत्तरपुराण के बारे में परिचय क्या है ?
उत्तरपुराण महापुराण का पूरक भाग हैं। इसमें अजितनाथ से आरंभ कर २३ तीर्थंकर, सगर से आरंभ कर 11 चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण तथा उनके काल में होने वाले विशिष्ट पुरुषों के कथानक दिये गये हैं।
इन विशिष्ट कथानकों में कितने ही कथानक इतने रोचक ढंग से लिखे गये हैं |
कि उन्हें प्रारंभ करने पर पूरा किये बिना बीच में छोड़ने की इच्छा नहीं होती। यद्यपि आठवें, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर को छोड़कर अन्य तीर्थंकरों के चरित्र अत्यंत संक्षिप्त रूप से लिखे गये हैं |
परंतु वर्णन शैली की मधुरता के कारण वह संक्षेप भी अरूचिकर नहीं होता हैं। इस ग्रंथ में न केवल पौराणिक कथानक ही हैं किंतु कुछ ऐसी स्थल भी हैं |
जिनमें सिद्धांत की दृष्टि से सम्यक् दर्शन आदि का और दार्शनिक दृष्टि से सृष्टिकर्तृत्व आदि विषयों का भी अच्छा विवेचन हुआ हैं।
4. महापुराण की अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ क्या है ?
अपभ्रंश भाषा में रचित महान ग्रंथ 'महापुराण' महाकवि पुष्पदंत की लेखनी से प्रसूत अमर काव्य हैं।
इसमें कुल 102 संधियाँ हैं जिनमें क्रमश: 24 जैन तीर्थकरों, 12 चक्रवर्तियों, 9 वासुदेवों, 9 प्रतिवासुदेवों और 9 बलदेवों, इस प्रकार 63 शलाकापुरुषों अर्थात् महापुरुषों का चरित्र सुंदर काव्य की रीति से वर्णित हैं।
आदि का अधिकांश भाग, जो 'आदिपुराण' भी कहलाता हैं, आदि तीर्थंकर ऋषभदेव और उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के जीवनचरित् विषयक हैं।
शेष शलाकापुरुषों का चरित्विषयक भाग 'उत्तरपुराण' कहलाता हैं। महापुराण के आदि कवि ने अपने पूर्ववर्ती भरत, पिंगल, भामह तथा दंडी का तथा मंचमहाकाव्यों का भी उल्लेख किया हैं।
रघुवंश
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