पूर्व मध्यकालीन भारत
भारत का इतिहास :- पूर्व मध्यकालीन भारत 240 ई.पू से लेकर 800 ई. तक है |
गुप्त साम्राज्य 280–550 ई.
गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ था।
जो की गुप्त कुषाणों के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य बिहार और उत्तर प्रदेश में था।
♥ पूर्व-मध्यकालीन भारत लेख के मुख्य बिंदुओ...
1. पूर्व-मध्यकालीन भारत की अवधि क्या है ?
2. गुप्त वंश की उत्पत्ति तथा इसके बारे में जानकारियाँ प्राप्त करने के स्त्रोत |
3. गुप्त वंश के प्रशासन, राजस्व के स्रोत, तथा व्यापार एवं वाणिज्य की जानकारियाँ |
4. गुप्त वंश के धार्मिक, सामाजिक तथा कला की जानकारियाँ |
5. गुप्त काल के कुछ प्रमुख मंदिर और उनके स्थान |
मालूम पड़ता है, की गुप्त शासकों के लिये बिहार की उपेक्षा उत्तर प्रदेश ज्यादा महत्त्व वाला प्रान्त था,
क्योंकि शुआती अभिलेख मुख्यतः इसी राज्य से प्राप्त किये गये हैं। यही से गुप्त शासक कार्यों का संचालन किया करते रहे होंगे।
और अन्य सभी दिशाओं में बढ़ते गये । गुप्त शासकों ने अपना अधिपत्य अनुगंगा यानि की मध्य गंगा मैदान, प्रयाग - इलाहाबाद, साकेत - आधुनिक अयोध्या और मगध पर स्थापित किया।
2. गुप्त वंश की उत्पत्ति तथा इसके बारे में जानकारियाँ प्राप्त करने के स्त्रोत |
गुप्त राजवंशों का इतिहास निम्नलिखित स्त्रोतों से प्राप्त होती है ...
2.1. ☆ विदेशी यात्रियों के वर्णन से |
2.2. ☆ पुरातात्विक के प्रमाणों से |
2.3. ☆ साहित्यक में वर्णन की गये तथ्य से |
2.1. ☆ विदेशी यात्रियों के वर्णन से |
विदेशी यात्रियों के विवरण से भी बहुत सी जानकारियाँ मिलती है | जैसे की... फ़ाह्यान जो चन्द्रगुप्त दित्तीय के काल में भारत में आया था।
उसने मध्य देश के जनता का वर्णन किया है । 7 वी. शताब्दी ई. में चीनी यात्री ह्वेनसांग के वर्णन से गुप्त इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
उसने कुमार गुप्त प्रथम, बुद्धगुप्त, बालदित्य तथा शकादित्य आदि गुप्त शासकों का वर्णन किया है।
उसके विवरण से यह मालूम होता है | की, कुमार गुप्त ने ही नालन्दा विहार की स्थापना की थी।
2.2. ☆ पुरातात्विक के प्रमाणों से |
अभिलेखीय साक्ष्य के अन्तर्गत समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति लेख सबसे महत्वपूर्ण है,
जिसमें समुद्रगुप्त के राज्यभिषेक उसके दिग्विजय होने तथा व्यक्तिव होने पर भी प्रकाश पड़ता है।
तथा अन्य अभिलेखों में चन्द्रगुप्त दित्तीय के उदयगिरि से प्राप्त गुहा लेख, और कुमार गुप्त का विलसड़ स्तम्भ लेख और स्कंद गुप्त का भीतरी स्तम्भ लेख, तथा जूनागढ़ अभिलेख महत्पूर्ण हैं।
2.3. ☆ साहित्यक में वर्णन की गये तथ्य से |
साहित्यिक साधनों में पुराण सर्वप्रथम है, जिसमें मत्स्य पुराण, वायु पुराण, तथा विष्णु पुराण द्वारा शुरूआती के शासकों के बारे में जानकारी मिलती है।
जैन ग्रंथों में ‘कुवलयमाला’ और ‘हरिवंश’ महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
स्मृतियों में पराशर, नारद और बृहस्पति स्मृतियों से गुप्तकाल की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक इतिहास की जानकारी मिलती है।
बौद्ध ग्रंथों के लोगो के लिये ‘आर्य मंजूश्रीमूलकल्प’ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके अलावा ‘वसुबन्धु चरित’ और ‘चन्द्रगर्भ परिपृच्छ’ से गुप्त वंशीय इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती है।
तथा लौकिक साहित्य के अन्तर्गत विशाखदत्त कृत ‘देवीचन्द्रगुप्तम्’ जो की यह एक प्रकार का नाटक है,
इससे गुप्त नरेश रामगुप्त तथा चन्द्रगुप्त के बारे में जानकारी मिलती है।
अन्य साहित्यक स्रोतों में – रघुवंश महाकाव्य, मुद्राराक्षस, मृच्छकटिकम, हर्षचरित, अभिज्ञान शाकुन्तलम्, वात्सायनन के कामसूत्र इत्यादि से गुप्तकालीन शासन व्यवस्था और नगर जीवन के विषय में बहुत सी जानकारी प्राप्त होती है।
गुप्तों की उत्पत्ति संबंधी विचार |
गुप्तों की उत्पत्ति के संबंध में बहुत से विद्वानों में मतभेद है। इस संबंध में कुछ विचारक इसे शूद्र या निम्नजाति से उत्पन्न मानते है |
हलाकि कुछ का मानना है, की गुप्तों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से हुई है। इस संबंध में विभिन्न् विचारकों के विचार भिन्न - भिन्न हैं।
3. गुप्त वंश के प्रशासन, राजस्व के स्रोत, तथा व्यापार एवं वाणिज्य की जानकारियाँ |
3.1. ☆ गुप्तकालीन प्रशासन |
गुप्तकालीन प्रशासन के समय में गणतंत्रीय राज - व्यवस्था का ह्मस हुआ। गुप्त प्रशासन राजतंत्रात्मक व्यवस्था पर पूर्ण रूप से आधारित था।
देवत्व का सिदान्त गुप्तकालीन शासकों में प्रचलित हो चूका था। राजपद वंशा के अनुशार के सिद्धान्त पर आधारित था।
राजा अपने ज्येष्ठ पुत्र को ही युवराज घोषित करता था। उसने उत्कर्ष के समय में गुप्त साम्राज्य दक्षिण में विंघ्यपर्वत से लेकर उत्तर में हिमालय तक तथा पश्चिम में सौराष्ट्र से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था।
3.2. ☆ राजस्व के स्रोत |
गुप्तकाल में राजकीय आय के प्रमुख स्त्रोत ‘कर’ थे, जो की निम्नलिखित रूप से वसूले जाते थे ...
भाग से - राजा को भूमि के उत्पादन से प्राप्त होने वाला छठां भाग कर के रूप में देना ।
भोग के लिये - सम्भवतः राजा को प्रतिदिन सब्जियों एवं फल-फूल के रूप में दिया जाने वाला कर।
प्रणयकर - गुप्तकाल में ग्राम वासियों पर लगाया गया अनिवार्य या स्वेच्छा चन्दा हुआ करता था। भूमिकर भोग का वर्णन मनुस्मृति में हुआ है। इसी प्रकार भेंट नामक कर का वर्णन हर्षचरित से प्राप्त हुआ है।
3.3. ☆ व्यापार एवं वाणिज्य |
गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य अपने चरम सीमा पर था।
मथुरा, अहिच्छत्र, कौशाम्बी, उज्जैन, भड़ौच, ताम्रलिपि, विदिशा, प्रयाग, प्रतिष्ष्ठान, पाटलिपुत्र, वैशाली, आदि महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नगर है।
इन सभी व्यापारिक नगर में उज्जैन सबसे अधिक और महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल था | क्योंकि यहाँ देश के हर कोने से मार्ग उज्जैन की ओर आता था।
स्वर्ण मुद्राओ की अधिकता के कारण ही संभवतः गुप्तकालीन व्यापार विकास कर सका था।
4. गुप्त वंश के धार्मिक, सामाजिक तथा कला की जानकारियाँ |
4.1. ☆ धार्मिक स्थिति
गुप्त साम्राज्य को ब्राह्मण धर्म एव हिन्दू धर्म के पुन: उत्थान का समय माना जाता है।
हिन्दू धर्म विकास यात्रा के इस चरण में कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दृष्टिगोचर हुये है, जैसे मूर्ति-पूजा हिन्दू धर्म का सामान्य लक्षण बन गयी। यज्ञ का स्थान उपासना ने ले लिया था |
और गुप्त काल में ही वैष्णव तथा शैव धर्म के मध्य समन्वय स्थापित हो चूका था। ईश्वर की आराधना को महत्त्व दिया गया। तत्कालीन महत्वपूर्ण सम्प्रदाय के रूप में शैव एवं वैष्णव सम्प्रदाय प्रचलन में थे।
4.2. ☆ सामाजिक स्थिति
गुप्तकालीन भारतीय समाज परंपरागत 4 जातियाँ थी, जिनका नाम निम्न प्रकार से है...
ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र एवं वैश्य में विभाजित था।
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में तथा वराहमिहिर ने वृहतसंहिता में चारों वर्णो के लिए भिन्न - भिन्न बस्तियों का विधान किया है।
न्याय संहिताओं में यह वर्णन मिलता है, की क्षत्रीय की परीक्षा अग्नि से, ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, वैश्य की परीक्षा जल से तथा शूद्र की विषय से की जानी चाहिए।
4.3. ☆ कला और स्थापत्य
गुप्त काल में कला की भिन्न -भिन्न विधा थी, जैसे की चित्रकला, मृदभांड कला, वस्तं स्थापत्य, इत्यादि में अभूतपूर्ण प्रगति देखने को मिलती है।
गुप्त कालीन स्थापत्य कला के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरन तत्कालीन मंदिर थे। मंदिर निर्माण कला का जन्म भी यही से शुरू हुआ। इस समय के मंदिर एक ऊँचे चबूतरें पर निर्मित किये जाते थे।
चबूतरे पर चढ़ने के लिये चारों तरफ से सीढ़ियों का निर्माण किया जाता था। देवता की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया गया था |
और गर्भगृह के चारों ओर ऊपर से छाया प्रदक्षिणा मार्ग का निर्माण किया जाता था। गुप्तकालीन मंदिरों पर पाश्वों पर यमुना, शंख, गंगा, एव पद्म की आकृतियां बनाई जाने लगी थी |
गुप्तकालीन मंदिरों की छतें प्रायः सपाट बनाई जाती थी | लेकिन शिखर युक्त मंदिरों के निर्माण के भी अवशेष के प्रमाण मिले हैं।
गुप्तकालीन मंदिर छोटी - छोटी ईटों तथा पत्थरों से बनाये जाते थे। ‘भीतरगांव का मंदिर‘ ईटों से ही निर्माण किया हुआ है।
5. गुप्त काल के कुछ प्रमुख मंदिर और उनके स्थान |
गुप्त काल के कुछ प्रमुख मंदिर और उनके स्थान...
क्र. स. | मंदिर | स्थान |
1. | विष्णु मंदिर | जबलपुर मध्य प्रदेश |
2. | शिव मंदिर | नागोद मध्य प्रदेश |
3. | पार्वती मंदिर | नचना कुठार, मध्य प्रदेश |
4. | दशावतार मंदिर | देवगढ़, झांसी, उत्तर प्रदेश |
5. | शिव मंदिर | नागौद, मध्य प्रदेश |
6. | भीतरगांव मंदिर | कानपुर, उत्तर प्रदेश |
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