विज्ञान और प्रोधौगिकी
1. भारतीय विज्ञान-प्रोधौगिकी के बारे में जानकारियाँ :-
भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व में सबसे प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है।
भारत में विज्ञान का शुरुआत ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है । तथा मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त सिंधु घाटी के प्रमाणों से यह ज्ञात होता है,
की वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि और वैज्ञानिक उपकरणों के इस्तेमाल का पता चलता है।
और प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में मुख्य भूमिका खगोल विज्ञान, चरक, सुश्रुत, एवं गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, आर्यभट्ट द्वितीय और ब्रह्मगुप्त तथा रसायन विज्ञान में मुख्य भूमिका नागार्जुन की खोजों का है।
इनकी इन सभी खोजों का इस्तेमाल आज भी किसी-न-किसी प्रकार से हो रहा है।
♥ भारतीय विज्ञान-प्रोधौगिकी की लेख के मुख्य बिंदुओ...
1. भारतीय विज्ञान-प्रोधौगिकी के बारे में जानकारियाँ
2. खगोल विज्ञान में प्राचीन भारतीय विज्ञान की उपलब्धियाँ |
3. गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय विज्ञान की उपलब्धियाँ |
4. अंकगणित के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान |
5. भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान |
6. रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान |
6. जीव विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान |
आज के समय में विज्ञान का स्वरूप बहुत विकसित हो चुका है।
पूरी संसार में तेजी से वैज्ञानिक के द्वारा खोजें हो रही हैं।
और इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की खोज और दौड़ में भारत के वैज्ञानिक
सत्येन्द्रनाथ बोस, हरगोविन्द खुराना, प्रफुल्ल चन्द्र राय, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, सी वी रमण, मेघनाद साहा, जगदीश चन्द्र बसु,
श्रीनिवास रामानुजन्, आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
♥ सम्पूर्ण भारतीय वैज्ञानिक परंपरा को निम्नलिखित और मुख्य रूप से दो चरणों में बाँटकर विस्तार रूप से अध्ययन किया जा सकता है -
☆ 1. प्राचीन भारतीय विज्ञान और
☆ 2. मध्यकालीन तथा आधुनिक भारतीय विज्ञान
2. खगोल विज्ञान में प्राचीन भारतीय विज्ञान की उपलब्धियाँ
खगोल विज्ञान भारत में ही विकसित हुआ। और प्रसिद्ध जर्मन खगोल-विज्ञानी कॉपरनिकस से पहले और लगभग 1000 वर्ष पहले ही आर्यभट्ट ने पृथ्वी की गोल आकृति और इसके अपनी धुरी पर घूमने की पुष्टि कर दी गई थी।
और इसी प्रकार आइजक न्यूटन से 1000 वर्ष पहले ही ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त की पुष्टि कर दी गई थी।
यह एक अलग बात है, की किन्हीं कारणवश से इन सभी खोज का श्रेय पाश्चात्य वैज्ञानिकों को प्राप्त हो गया ।
3. गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय विज्ञान की उपलब्धियाँ
बहुत से खोज और अविष्कार जिस पर आज यूरोप को इतना गर्व है, की एक विकसित गणितीय पद्धति के बिना असंभव ही था ।
और यह पद्धति भी संभव नहीं हो पाती यदि यूरोप बहुत ही भारी-भरकम रोमन अंकों के बंधन में ही बंधा हुआ रहता।
नई पद्धति को खोज निकालने वाला वह अज्ञात व्यक्ति भारत ( हिन्दुस्तान) का ही पुत्र था।
और मध्ययुग में भारतीय गणितज्ञों, जैसे की.. ब्रह्मगुप्त (सातवीं शताब्दी), महावीर (नवीं शताब्दी) और भास्कर (बारहवीं शताब्दी) ने बहुत सी ऐसी कई खोजे कीं,
जिनसे पुनर्जागरण काल अथवा उसके बाद तक भी यूरोप अनजान था। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में गणित की उच्चकोटि की परंपरा हमेशा से रही थी।
4. अंकगणित
हड़प्पाकालीन संस्कृति के बहुत से लोग अवश्य ही अंकों और संख्याओं से के बारे में होंगे।
इसी युग की लिपि के अब तक न पढ़ा जा सकने के कारण मूल रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।
लेकिन भवनों, सड़कों, स्नानागारों, नालियों, आदि के निर्माण में अंकों और संख्याओं का निश्चित रूप से इस्तेमाल किया होगा।
मापना - तौलना और व्यापार क्या बिना अंकों और संख्याओं के संभव हो सकता था?
हड़प्पाकालीन संस्कृति की लिपि के पढ़ा जाने के पश्चात निश्चित ही अनेक नये तथ्य उजागर होंगे।
और इसके बाद वैदिक-कालीन भारतीय अंकों और संख्याओं का इस्तेमाल किया करते थे। और वैदिक युग के एक ऋषि मेघातिथि 1012 तक की बड़ी संख्याओं से भलीभांति रूप से परिचित थे।
वे अपनी आकड़ो के गणनाओं में दस और इसके गुणकों का इस्तेमाल करते थे। ‘यजुर्वेद संहिता’ के अध्याय 17, मंत्र 2 में 10,00,00,00,00,000 (एक पर बारह शून्य, यानि की दस खरब) तक की संख्या का उल्लेख सामने आता है।
ईसा से 100 वर्ष पहले का जैन ग्रन्थ ‘अनुयोग द्वार सूत्र’ है। इसमें असंख्य तक की आकड़ो की गणना किया गया है, जिसका परिमाण 10140 के बराबर है।
और उस समय यूनान में बहुत ही बड़ी-से-बड़ी संख्या का नाम 'मिरियड' रखा गया था, जो 10,000 (दस सहस्र) थे |
रोम के लोगों की बहुत ही बड़ी-से-बड़ी संख्या का नाम मिल्ली रखा था, जो 1000 (सहस्र) थी। शून्य यानि की Zero का इस्तेमाल पिंगल ने अपने छन्दसूत्र में ईसा के 200 वर्ष पहले किया था।
इसके बाद तो शून्य का उपयोग बहुत से ग्रंथों में किया जाने लगा है। लेकिन ब्रह्मगुप्त (छठी शताब्दी) के पहले भारत के गणितज्ञ थे |
जिन्होंने शून्य को इस्तेमाल में लाने के कई नियम बनाये हुए थे। जो की इनके अनुसार इस प्रकार से है-
• अगर शून्य को किसी संख्या से घटाया या उसमें जोड़ा जाये उस संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
• अगर शून्य से किसी भी संख्या के साथ गुना किया जाये तो परिणाम भी शून्य ही होता है।
• और यदि किसी संख्या को शून्य से विभाजित किया जाये, तो उसका परिणाम अनंत होता है।
उन्होंने इस तथ्य को गलत कहा था, कि शून्य से अगर विभाजित किया जाये तो परिणाम भी शून्य होता है,
क्योंकि आज हम सभी जानते हैं, की यह अनन्त तक की संख्या होती है। और अब यह बिना विवाद रूप से सिद्ध होता है,
संसार को संख्याएँ लिखने की आधुनिक प्रणाली भारत ने ही प्रदान की है।
ऐसे बहुत से गणित के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको ने अपना महत्वपूर्ण और अहम योगदान दिया है, जैसे की...
ज्यामिति
क्षेत्रमिति
बीजगणित
और ऐसे बहुत से भौतिकी के भी क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको ने अपना महत्वपूर्ण और अहम योगदान दिया है, जैसे की...
भौतिकी विज्ञान
रसायन विज्ञान
जिव विज्ञान
5. भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान
प्राचीन काल में से ही भारत में अन्य विज्ञानों के साथ-साथ भौतिकी का भी प्रचलन शुरू हो चूका था।
कणाद ऋषि ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व ही इस बात को सिद्ध किया था |
कि विश्व में जो भी पदार्थ है, वे सभी पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना हुआ है। उन्होंने परमाणुओं की संरचना, और प्रवृति तथा प्रकारों की चर्चा की है।
6. रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान
भारत में रसायन विज्ञान की भी परंपरा बहुत पुरानी है। प्राचीन और मध्य काल में संस्कृत भाषा में लिखा हुआ रसायन विज्ञान के वे सभी 44 ग्रंथ अब भी उपलब्ध हैं।
नागार्जुन (दसवीं शताब्दी) ने रसायन विज्ञान पर ‘रसरत्नाकर’ नामक ग्रंथ की रचना किया है। और इस ग्रंथ में पारे के यौगिक को बनाने के प्रयोग को दर्शाया गया हैं।
और भी अन्य जैसे की.. सोना, चाँदी, टिन, और ताँबे के अयस्क को भूगर्भ से निकाल कर और उसे शुद्ध करने की विधियों का विस्तृत विवरण भी दिया दर्शाया है।
नागार्जुन ने पारे से संजीवनी उपचार बनाने के लिए पशुओं और वनस्पति के तत्वों तथा अम्ल और खनिजों का इस्तेमाल किया जाता था ।
वनस्पति के द्वारा निर्मित तेजाबों में नागार्जुन ने हीरे, धातु और मोती गला लिया करते थे।
इन्होंने ने रसायन विज्ञान में इस्तेमाल आने वाले उपकरणों का भी विवरण दिया गया है।
और इस ग्रंथ में शुद्ध करने के लिये इन सभी विधियोंका इस्तेमाल करने के बारे में भी विवरण दिया गया है, जैसे की आसवन, द्रवण, उर्ध्वपातन और भूनने |
7. जीव विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको का योगदान
नागार्जुन के अलावा भारत के अन्य
महान रसायन शास्त्र वृंद का नाम भी उल्लेखनीय है।
वृंद ने औषधि रसायन पर ‘सिद्ध योग’ नामक ग्रंथ लिखी है। इसमें विभिन्न रोगों के इलाज के लिए धातुओं के साथ एक निश्चित अनुपात में तथा उन मिश्रण का भी विवरण दिया गया है।
भारत में बहुत से रसायन शास्त्रियों ने पहली और दूसरी शताब्दी तक ही कई रासायनिक फॉर्मूले खोज लिये थे।
जैसे की पारद (पारा) के यौगिक, और अकार्बनिक लवण तथा मिश्र धातुओं का इस्तेमाल और मसालों से कई प्रकार के इत्र बनाने के बारे में खोज किये थे।
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